1.
चेहरे के चन्दन वन से जब, आँखों
की गंगा बहती है
अनुभूत हॄदय के पल सारे, तब
सौरभ से भर जाते हैं
संचय तो क्षीण नहीं होता आँसू
का भी, पीड़ा का भी
सुधियों के दावानल में कुछ
पड़ने लगती आहुतियां भी
शैशव भावों की उंगली को जब नहीं
थामता चित्र कोई
टूटे शीशे की किरचों से वे बिखर
बिखर रह जाते हैं
सिसकी के रोली अक्षत से अभिषेक
स्वरों का होता है
सुबकी के विस्तॄत अंबर में आशा
का पंछी खोता है
घनघोर ववंडर यादों के जब जीवन
की जर्जर नौका
को घेरा करते, धीरज के टुकड़े
टुकड़े हो जाते हैं
एकाकीपन के विषधर की रह रह
कुंडली कसा करती
स्मॄतियां पंख कटी कोई
गौरेय्या सी बन कर रहती
खिड़की के धुंधले शीशे से छनती
संध्या की किरणों के
दीवारों पर बनते साये सहसा
गहरे हो जाते हैं
------------------------------- गीतकार - Tue Feb 28, 2006 10:52 pm
2.
Kisse kehtee ? kaun sune ?
umadateen rehteen jo mann mein,
Neer bhuree badlee see ,
birhan ki, wo ankahee yaadein !
Bhogee jo her Urmila ne
paashan vat Ahilya ne ~~
Shakuntala ne, jo Van mei,
Her Maa ne, prasav peeda mein !
wo ankahee yaadein !
Kaise Aashru ko koyee samjhaye ?
Kaise mann ke bhaavon ko dikhlaye?
Aisa Vaani mei samarthya kahan ?
Jo Rangon ko bol ker darshaye ?
AAh ! Ye, ankahee yaadein !
Reh jaateen hain ankahee hee
Laakh samjhane per bhee,
Kitnee hee Bheeshma pratigya see,
Dhartee ke garbh mein dabee dabee
bhavi ke ankur see, "ANKAHEE YAADEIN "
------------------------------- Lavanya Shah - Tue Feb 28, 2006 9:11 pm
3.
पीले झरते पत्तों पर
चल कर देखा कभी ?
फिर अपने पाँव देखे क्या ?
तलवों पर याद छोडती है
अपने अंश,
लाल आलते सी
छाती में उठती कोई हूक
रुलाई सी
जब फूटती भी नहीं
तब समझ लेना
कोई अनकही याद
फिर तुम्हारे आँचल का कोना
पकड कर खींचेगी.
तुम तैयार तो हो
न भी हो तो क्या
पाँव के नीचे झरे पत्ते हैं
और ऊपर
किसी दरख्त का पुख्ता शाख
------------------------------- प्रत्यक्षा सिन्हा - Wed Mar 1, 2006 2:56 pm
4.
Smriti ke pichhwaade-
baitha hoon jo yaado.n ke aangan,
kabhi jhenp-sa jaata hoon,
kabhi koi muskaan gujar-si jaati hai
kishor-man ka pehla sapna youvan ka
pratham-prem ka hriday dhadakna
chori-chhupe shararati nazaro.n ka
yahan dekhna, wahan ghoorna
Yaado.n ke aise, man me angin jo saaye hain
meri naitikta ki bandish ne
unko jaane kitne aansoo rulaaye hain
chhod samajik paimaano.n ki chadar
jo aaj nagn main baitha hoon...
swatwa poorna nirmal ho aaya
swabhavikta ko jas-ka-tas paaya hai
yaadein ye akathniya rahi hain
shayad ankahi hi.n reh jaayengi
Aur tod jo paayi bediyaa.n
gudgudi laga fir jaayengi
------------------------------- Vivek Thakur - Thu Mar 2, 2006 2:23 am
5.
यादों की जो खोली पोटली
आँखें भर आईं,हो गईं गीली।
इन आँखों में उभर आये
बीते मीठे लमहे।
कई बार सोचा विचारा
ये लमहे पा जाते शब्द
ज़िन्दगी हो जाती पार
न होती दूभर; दुष्कर।
एक बात बताओ
मेरे भूतकाल के दोस्त,
तुम भी तो खोल सकते थे
खुद के मन को मेरे सामने।
हम दोनों की चुप्पी ने
समा दिये सारे सपने
अनकही यादों में।
------------------------------- मधु अरोरा - Thu Mar 2, 2006 5:18 pm
6.
यादें हैं कुछ अनकही
सी
चंद घडियों की वो
साथी
मेरी यादों से ना
जाती
बातें हैं पुरानी
लेकिन
उन साँसों की गरमी की
तासीर है कुछ नई नई सी.
उसकी छन्न हँसी
भोलापन
शोख चूडियाँ
खन्न-खना-खन्न
गीतों की दूनियाँ है
लेकिन
उस पायल की सरगम की
धुन
ज़ेहन मे कुछ बसी बसी सी.
मुस्कान लिए ये होंठ हमारे
अरमान लिए हर काज हमारे
सारी खुशीयाँ मयस्सर
लेकिन
आँखों की पलकों के
नीचे
हल्की सी कुछ नमीं
नमीं सी.
किस्मत मे तुम नही हमारी
तुझको सोचूं खता हमारी
ना ज़ाने क्यूँ फ़िर भी
लेकिन
उन लम्हों की भीनी
यादें
लगती हैं कुछ अनकही सी.
------------------------------- समीर लाल - Fri Mar 3, 2006 8:49 am
7.
मुझे आज भी
अपनी किताबों से भरी
अलमारी के सामने
तुम्हारा बिंम्ब
नजर
आने लगता है
जहाँ तुम अपने
पँजों के बल पर
उचककर
किताबों के ढेर में
अपनी पंसदीदा
किताब को तलाशते
घंटों बिता
देती थी
और मैं तुम्हारी
ऐङी पर पङी
गहरी, फटी
दरारों को
देखता रहता
------------------------------- संगीता मनराल - Fri Mar 3, 2006 11:25 am
8.
सालों बीत जाने के बाद भी
तुम्हारी मनमोहक हंसी का
वह अदभुत पल
जिसको जिया था मैनें
अपने आप में
बिना इजहार किए
अपने भावनाओं को
कभी कभी टीस देती है
दिल में अचानक
एक अनकही यादें बनकर
न जाने कैसे बीत गए
इतने साल
उसी सुनहरी यादों के
मखमली पलनों में पलकर
जिसको कह न पाया
अब तक तुम्हें
और कह न पाउं
मगर
वही अनकही यादें
यादें बनकर रहेगी
जिन्दगी भर
तुम्हारे लिए
------------------------------- निर्भीक प्रकाश - Fri Mar 3, 2006 5:18 pm
9.
गुज़रती रहीं शामें
वो ढेरों अनकही बातें
और उन बातों के
किसी कोने में
छुपे लम्हों से
चुन कर रख लेना मेरा
इक छोटा सा पराग
खुश्बू उसकी चुपके से
देती थी जो मधुर अहसास
उन सपनीले पलों में
वो कुछ चुप पल,
कुछ कहने की कोशिश
और फिर इक लम्बी साँस,
जो बात कही नहीं थी कभी
और कह गयी सब कुछ
रोना भी सीखा चुपके से और
हँस कर छुपा लेना मन उदास
कुछ धीरे से कह जाना
और फिर कहना "कुछ नहीं"
और ऒढ लेना फिर से
चुप्पी का लिबास
उन ढेर सारी बातों में
उन बिना मिली मुलाकातों में
बन्द रह गये बँध कर
जाने कितने अहसास
------------------------------- मानोशी चैट्रर्जी - Sun Mar 5, 2006 12:54 am
10.
स्मॄतियों की मंजूषा में भूली
भटकी कुछ यादें हैं
सूखे फूल किताबों में सी वादों
वाली भी यादें हैं
कभी जिया है सोचा भी है, और
उन्हें महसूसा मैने
पर न कहा न बाँटा जिनको वे
अनकही मेरी यादें हैं...
------------------------------- राकेश खंडेलवाल - Wed Mar 8, 2006 1:27 am
11.
गये पतझङ में
मैं तुम्हारे
आँगन मे खङे
पीपल के
पीले गिरे पत्तों से
चुनकर
एक सूखा पत्ता
उठा लाया था
वो
आज भी
मेरे पास
मेरी पसंदीदा
किताब के
पेज नम्बर २६
के बीच पङा
मुझे
परदेस में
तुम्हारा
प्यार देने को
सुरक्षित है
------------------------------- संगीता मनराल - Thu Mar 9, 2006 2:45 pm
12.
मूक जुबान, कुछ
कहने कि कोशश में है,
फिर भी व्यक्त करने में नाकाबिल
नहीं बता पाती उन अहसासों को
जो उमड़ घुमड़ कर
यादों के सागर से
उस जु़बां के अधर पर
आ तो जाते है,
पर अधूरी सी भाषा में
कुछ अनकही दास्तां, बिना कहे
अपूर्णता के भाव लिये
चुपी को ओढ लेते है
शायद इसलिये, वो जज़बात की
सुन्हरी यादों के मोती है
बस अनमोल यादों के मोती है़
जो यादों की सीप में जा बसे हैं
------------------------------- देवी नागरानी - Thu Mar 9, 2006 5:57 pm