1.
जैसी नदिया की धारा
ढूँढे अपना, किनारा,
जैसे तूफ़ानी सागर मे,
माँझी, पाये किनारा,
जैसे बरखा की बदली,
जैसे फ़ूलों पे तितली,
सलोने पिया, मोरे
सांवरिया,
वैसे मगन, मै और तुम.
लिपटी जैसे बेला की
बेल,
ऊँचे घने पीपल को घेर,
जैसे तारों भरी रात,
चमक रही चंदा के साथ,
मेरे आंगन मे चाँदनी,
करे चमेली से ये बात,
सलोने पिया, मोरे
सांवरिया,
भयले मगन, मै और तुम.
------------------------------- लावण्या शाह - Wed Mar 15, 2006 6:00 am
2.
तुम
समन्दर का एक किनारा हो
मैं एक प्यास लहर की तरह
तुम्हें चूमनें के लिये
उठता हूँ ,
तुम तो चट्टान की तरह
वैसी ही खड़ी रहती हो
मैं ही हर बार तुम्हें
बस छू के
लौट जाता हूँ ,
मैं ही हर बार तुम्हें
बस छू के
लौट जाता हूँ ।
------------------------------- अनूप भार्गव - Thu Mar 16, 2006 3:13 am
3.
मैं तुम हम
मेरे और तुम्हारे बीच
एक गर्म लावा
दहकता है
कहो तो
बर्फ के कुछ फूल
खिला दूँ यहाँ
फिर उस पर
पाँव पाँव रखकर
मैं आ जाऊँगी
तुम तक
मेरे बढे हाथों को
थाम लोगे तुम
चुनकर कुछ अँगारे
कुछ फूल
भर देना
मेरी हथेलियों के �"क में
मैं फूँक मार कर
समेट लूँगी सब
तुम्हारे लिये
फिर न मैं रहूँगी
न तुम रहोगे
सिर्फ हम रहेंगे
सिर्फ हम
------------------------------- प्रत्यक्षा सिन्हा - Fri Mar 17, 2006 9:37 am
4.
मैं
चला था
सफ़र में योंहि
नितांत अकेला
भटकते राहों में
दूर दूर तक
न था कोई हमसफ़र
जिससे बांट सकूं
अपनी भावनाओं को
और बांट लू उनके
सारे दर्द को
अचानक मिली तुम
और तुम्हारा कोमल स्पर्श
जिसकी गर्माहट पाकर
प्रफूल्लित हो गया मैं
और जाना सफ़र में
हमसफ़र का मतलब
मगर मुझे क्या पता था
कि तुम एक बसंती बयार हो
जो अपनी महकती खुसबू देकर
चली जाती है दूर
बहुत दूर
मैं और तुम को
नदी के दो किनारे बनाकर
फिर से राह में
मैं को अकेला छोड
------------------------------- निर्भीक प्रकाश - Fri Mar 17, 2006 1:55 pm
5.
हे प्रियतम
अद्भुत छवि बन
सुन्दरतम
बसे हो तुम
मन मन्दिर मे
आराध्य बन
भ्रमर जैसे
पागल बन ढूँढू
मैं पुष्पवन
तुम झरना
मैं इंद्रधनुष के
रंगीन कण
चंचलता मैं
ज्यों अल्ह्ड लहर
सागर तुम
तुम विशाल
अनंत युग जैसे
मैं एक क्षण
हो तरुवर
अडिग धीर स्थिर
मैं हूं पवन
जैसे ललाट
पर कोरी बिन्दिया
सजे चन्दन
हे प्रियतम...
------------------------------- मानोशी चैट्रर्जी - Sat Mar 18, 2006 12:44 am
6.
निस्पंद
और
निष्प्राण
मैं
और
तुम
निश्छल स्वछंद बहती
शीतल बयार
तुम्ही से है मुझमे
प्राणों का संचार
तुम्ही हो मेरे जीवन
का आधार.
------------------------------- समीर लाल - Mon Mar 20, 2006 7:29 am
7.
"मैं" और "तुम" की
अजब दास्तां है।
जब तक अलग हैं
"हम" की कशिश
करती है बेकरार।
"हम" होते ही
अचानक एक दिन
"मैं" और "तुम"
उठा लेते हैं अपना फन।
"हम" रहता है बिसूरता
रात-दिन है सोचता
कहाँ गये ?
वे कशिश भरे दिन
हे "मैं" और "तुम!"
प्लीज, हटा लो ये दीवार
"हमें" जी लेने दो यार।
------------------------------- मधु अरोरा - Sun Mar 19, 2006 6:35 pm
8.
तुम्हें याद है
चिन्टू के लिये मैं
उसका घोङा
जो हर शाम उसको
अपनी पीठ पर बैठाकर
पूरे
५-६ चक्कर
लगाया करता था
और तुम
एक खूबसूरत परी
जो उसकी
हर फरमाईश
पूरी करती थी
आज शायद
हम दोनो
उसके लिये
स्टोर रूम में पङी
पुरानी चीज़ों से
कुछ ज्यादा नहीं
------------------------------- संगीता मनराल - Mon Mar 20, 2006 5:44 pm
9.
मैं और तुम
तुम और मैं
क्या अर्थ है इन शब्दों का ?
हम कब बँटे ?
मैं और तुम मेंं
आद्या प्रकॄति
अर्ध नारीश्वर
और सॄष्टि की संरचना
सब हमी से हुई
तुम और मैं से नहीं
तो फिर आज
क्यों करें हम
हम का विभाजन
तुम और मैं में ?
------------------------------- मैत्रेयी अनुरूपा - Mon Mar 20, 2006 10:52 pm
10.
पहचान तेरी है मुझसे मानो
मेरी भी तो तुमसे जानो
अनजान सी इस राह पे भी
कैसे दोनों है हमजोली...
मैं और तुम़।
दामन तूने मेरा थामा
मैंने भी तो तेरा थामा
साथ रहे संग दोनों ऐसे
जैसे दामन चोली...
मैं और तुम।
तुमजो देखो मुझको हसकर
मैं भी तो हस देती तुमपर
तेरी उदासी, मेरी उदासी
मन से दोनों भोला भोली...
मैं और तुम।
रूप मैं तेरा तू है मेरा
जैसी तू है वैसी ही मैं
आईना बन सौत खडा क्यों
तेरे मेरे बीच सहेली...
मैं और तुम।
रूप सजे जो तेरा देवी
मैं भी सजी हूं सुंदर वैसी
देख के दर्पण मैं शरमाऊं
खेले है मन ज्यूं रंगोली...
मैं और तुम।
------------------------------- देवी नागरानी - Tue Mar 21, 2006 12:24 am
11.
उस दिन,
मेरे घर से निकलते ही बन्टू छींका
थोड़ा आगे गया तो बिल्ली ने रास्ता काटा
मैं ये सब मानता नहीं था
सो चलता रहा
उसी दिन,
मेरी तुमसे पहली मुलाकात हुई
अब मैं कट्टर अन्धविश्वासी हूं...
------------------------------- नीरज त्रिपाठी - Fri, 24 Mar 2006, 22:34:23
बुधवार, मार्च 22, 2006
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1 टिप्पणी:
अति सुंदर प्रयास "नई हवा-अनुभूति-हिन्दी गुट" का.
बहुत बधाई और शुभकामनाऎं.
समीर लाल
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