बुधवार, मार्च 22, 2006

शीर्षक 03 – थकान

1.
करते करते काम कभी गर तुम थक जाओ
कार्यालय की कुर्सी पर चौड़े हो जाओ

ऐसे सोओ सहकर्मी भी जान न पाएं
रहे ध्यान आफिस में न खर्राटे आएं

ऐसा हो अभ्यास बैठे बैठे सो जाओ
कुम्भकरण को तुम अपना आदर्श बनाओ

जागो तब ही झकझोरे जब कोई हिलाए
पलक झपकते ही निन्नी रानी आ जाए

ऐसे लो जम्हाई कि दूजे भी अलसाएं
आंख बन्द करते तुमको खर्राटे आएं

अपने पैर पसार के लेओ चादर तान
जीवन की आपाधापी में जब भी लगे थकान

------------------------------- नीरज त्रिपाठी - Wed Feb 15, 2006 3:33 pm

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