गुरुवार, जून 15, 2006

जुगलबन्दी-03

1.
दीप दीपावली के हज़ारों नये
, मेरी अँगनाई में मुझको घेरे रहे
किन्तु थे वे सभी बातियों के बिना, इसलिये छाये फिर भी अँधेरे रहे
रोशनी की किरण, इस गली की तरफ़, आते आते कहीं पर अटक रह गई
ज़िन्दगी के क्षितिज पर उमड़ते हुए, बस कुहासों के बादल घनेरे रहे

----------------------------------------------राकेश खंडेलवाल, Dated: 6/16/2006 06:27:03 AM.

2.

कोई तो आकर दीप जलाए

दिल में छुपे है घोर अँधेरे
कोई तो आकर दीप जलाए ॥
यादों के साए मीत है मेरे
कोई उन्हें आकर सहलाए ॥

टकरा कर दिल यूँ है बिखरा
तिनका तिनका बन कर उजडा
चूर हुआ है ऐसे जैसे
शीशों से शीशा टकराए॥

चोटें खाकर चूर हुआ जो
जीने पर मजबूर हुआ वो
जीना मरना बेमतलब का
क्या जीना जब दिल मर जाए॥

चाह में तेरी खोई हूँ मैं
जागी हूँ ना सोई हूँ मैं
सपनों में वो आके ऐसे
आँख मिचौली खेल रचाए॥

तेरे मिलन को देवी तरसे
तू जो मिले तो नैना बरसे
कोई तो मन की प्यास बुझाए
काली घटा तो आए जाए॥

----------------------------------------------Devi Nangrani, Dated: Wed, 21 Jun 2006 20:49:15 -0000

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